दिवाली गुजरे दो दिन बीत चुके हैं लेकिन दिल्ली को अभी भी एक अजीब सी धुंए जैसे फॉग की चादर ने अपनी गिरफ्त में लिया हुआ है। असल में जिसे आप शायद सर्दियां शुरू होने की आहट समझ रहे हैं वो फॉग नहीं आपकी सेहत के लिए बेहद खतरनाक स्मॉग है। दिल्ली में छाई ये धुंध सर्दियों के कोहरे जैसी नहीं है, असल में ये वो खतरनाक कोहरा है जो आपको सांस और फेफड़ों से संबंधित कई गहरी बीमारियां दे सकता है।
क्या है स्मॉग
सामान्य भाषा में समझा जाए तो ये प्रदूषित हवा का एक प्रकार ही है। ‘स्मॉग’ शब्द का इस्तेमाल 20वीं सदी के शुरूआत से हो रहा है। यह शब्द अंग्रेजी के दो शब्दों ‘स्मोक’ और ‘फॉग’ से मिलकर बना है। आम तौर पर जब ठंडी हवा किसी भीड़भाड़ वाली जगह पर पहुंचती है तब स्मॉग बनता है। ठंडी हवा भारी होती है इसलिए वह रिहायशी इलाके की गर्म हवा के नीचे एक परत बना लेती है। तब ऐसा लगता है जैसे ठंडी हवा ने पूरे शहर को एक कंबल की तरह लपेट लिया है।
गर्म हवा हमेशा ऊपर की ओर उठने की कोशिश करती है लेकिन ऐसा नहीं कर पाती और एक ढक्कन की तरह व्यवहार करने लगती है। कुछ ही वक़्त में हवा की इन दोनों परतों के बीच हरकतें रुक जाती हैं। इसी खास ‘उलट पुलट’ के कारण स्मॉग बनता है। और यही कारण है कि गर्मियों के मुकाबले जाड़ों के मौसम में स्मॉग ज्यादा आसानी से बनता है। स्मॉग बनने का दूसरा बड़ा कारण है प्रदूषण। पिछले दो दिनों से दिल्ली को जिस स्मॉग ने अपनी चपेट में लिया हुआ है उसका कारण है दिवाली के दिन हुआ भीषण प्रदूषण।
दिल्ली की हालत है सबसे ख़राब
गौरतलब है कि इस दिवाली के मौके पर दिल्ली में बीते तीन सालों के मुकाबले सबसे ज्यादा प्रदूषण दर्ज किया गया है। बीते 36 घंटों के दौरान दिल्ली की हवा में PM 10 की संख्या 4 सौ को भी पार कर गई। प्रदूषण का आलम यह है कि देश की 10 सबसे प्रदूषित जगहों में से 8 दिल्ली-एनसीआर की हैं।
दिल्ली में प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर शादीपुर इलाके में दर्ज किया गया जहां हवा में PM 2.5 की मात्रा 471 दर्ज की गई, जबकि इसका लेवल ज़ीरो से 50 के बीच सबसे सही माना जाता है। देश के दूसरे हिस्सों में भी पटाखों का असर देखा गया है और दिल्ली से अलग दूसरे शहरों में भी प्रदूषण का स्तर बढ़ा है। ठंड की दस्तक और गाड़ियों, फैक्टरियों के धुएं की वजह से भी प्रदूषण में बढ़ोतरी हुई है।
कैसे बजा देगा ये आपकी सेहत की बैंड
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) एक अरसे से स्मॉग और उससे सेहत को पहुंचने वाले नुकसान के प्रति देशों को जागरूक करने की कोशिश करता रहा है। स्मॉग में सूक्ष्म पर्टिकुलेट कण, ओजोन, नाइट्रोजन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाई ऑक्साइड मौजूद होते हैं जो लोगों की सेहत के लिए बेहद खतरनाक हैं। पिछले सालों में डब्ल्यूएचओ ने बार बार कहा है कि इन हानिकारक पदार्थों के लिए एक सीमा तय करनी चाहिए नहीं तो बड़ें शहरों में रहने वाले लोगों को बहुत नुकसान पहुंचेगा।
जाड़ों में जब स्मॉग का मौसम चल रहा होता है तब गाड़ियों के धुंए से हवा में मिलने वाले ये सूक्ष्म कण बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर देते हैं। इन सूक्ष्म कणों की मोटाई करीब 2.5 माइक्रोमीटर होती है और अपने इतने छोटे आकार के कारण यह सांस के साथ फेफड़ों में घुस जाते हैं और बाद में हृदय को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। गर्मियों में जब स्मॉग बनता है तो सबसे बड़ी समस्या होती है ओजोन की। कारों के धुएं में जो नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन्स होते हैं, वे सूर्य की रोशनी में रंगहीन ओजोन गैस में बदल जाते हैं। ओजोन ऊपरी वातावरण में एक रक्षा पर्त बना कर हमें सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाता है। लेकिन वही ओजान अगर धरती की सतह पर बनने लगे तो हमारे लिए बहुत जहरीला हो जाता है।
दोयेचे वेले की एक रिपोर्ट के मुताबिक जर्मनी में माइंस के माक्स प्लांक इंस्टीट्यूट के बेनेडिक्ट श्टाइल की एक रिसर्च में सामने आया है कि ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं है कि स्मॉग असल में कितना खतरनाक हो सकता है। हर साल सिर्फ जर्मनी में ही 40,000 से ज्यादा लोग वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों से अपनी जान गंवा देते हैं। यह संख्या सड़कों पर दुर्घटनाओं में मारे जाने वालों से भी ज्यादा है। लंबे समय तक इन हानिकारक पदार्थों के संपर्क में आने पर सांस की खतरनाक बीमारियां, फेफड़ों या मूत्राशय का कैंसर भी हो सकता है।
क्या सावधानियां बरतें:
स्मॉग सबसे ज्यादा अस्थमा और सांस की अन्य बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए मुसीबत बनकर आता है। बढ़ते प्रदूषण के कारण ठंड के मौसम में स्मॉग हावी हो जाता है इससे दमा और सांस के मरीजों को सांस लेना दूभर हो जाता है। स्मॉग में छिपे केमिकल के कण अस्थमा के अटैक की आशंका को और ज्यादा बढ़ा देते हैं। स्मॉग से फेफड़ों तक हवा पहुंचाने वाली ट्यूब में रुकावट, सूजन, रूखापन या कफ आदि के कारण भी समस्या होती है। जानिए क्या करना चाहिए
1.अस्थमा के रोगियों को स्मॉग से बचने के लिए यह बहुत जरूरी है कि वे जिस जगह पर रहते हैं वहां की हवा की गुणवत्ता के बारे में जानकारी रखें। अगर आपके इलाके की हवा अधिक प्रदूषित है तो घर के अंदर ही रहने की कोशिश करें और अगर बाहर जाना जरूरी है तो पूरी सतर्कता का पालन करें। आम लोग भी इन नियमों का पालन करेंगे तो ये उन्हें सांस और फेफड़े संबंधी बीमारियों से बचाए रखेगा।
2. सर्दियों के मौसम में दिन छोटा होता है, ऐसे में अगर आप बाहर व्यायाम के लिए जाना चाहते हैं तो कोशिश करें कि सुबह जल्दी व्यायाम कर लें। क्योंकि सूर्य की किरणों के साथ स्मॉग और भी खतरनाक हो जाता है। ऐसे में घर के अंदर ही व्यायाम करें। घर के बाहर पार्क में जाकर व्यायाम करने से बचें। इसके अलावा जितना हो सके घर के अंदर ही रहें।
3. अस्थमा के रोगियों को खासकर बच्चों को स्मॉग से बचने के लिए मॉस्क पहनायें। अगर वे घर से बाहर जा रहे हैं तो बिना मॉस्क के न जायें। जो बच्चे अस्थमा से पीडि़त हैं उनके लिए यह मौसम अधिक खतरनाक होता है। इसलिए बच्चों को अच्छी गुणवत्ता वाले मास्क पहनायें। दिवाली के बाद जैसा स्मॉग दिल्ली में है उसमें तो आम लोगों को भी मास्क पहनना चाहिए।
4. ठंड के मौसम में अस्थमा के रोगियों के लिए घर के बाहर की ही नहीं बल्कि घर के अंदर की हवा भी सुरक्षित नहीं है। ऐसे में घर के अंदर की हवा साफ करने के लिए एअर फ्रेशनर घर पर लगायें। जब भी खिड़की या दरवाजे खोलें पहले बाहर की हवा की गुणवत्ता जांच लें। अगर जरूरी न हो तो दरवाजे और खिड़की बंद रखें। अगर समस्या अधिक हो रही हो तो चिकित्सक से जरूर संपर्क कर लीजिए।
5. अगर आप दिल्ली में रहते हैं और पिछले दिनों से आपको सांस लेने में तकलीफ हो रही है तो डॉक्टर से ज़रूर सलाह लें। डॉक्टर जो भी सलाह दे उसे पूरी तरह फ़ॉलो करने की कोशिश करें।